Monday, May 6, 2013

Sad (Dard) Shayari - Part II (सेड (दर्द) शायरी - पार्ट II)






बचपन के दिन कितने अच्छे थे,
तब दिल नहीं बस खिलौने टूटा करते थे,
अब एक आँसू गिरे तो सहा नहीं जाता,
बचपन में तो दिल भर के रोया करते थे।





वफ़ा का दरिया कभी रुकता नहीं,
इश्क में प्रेमी कभी झुकता नहीं,
खामोश हैं हम किसी की ख़ुशी के लिए,
ना सोचो की हमारा दिल दुखता नहीं।




ऐसा जगाया आपने की अब तक ना सो सके,
यूँ रुलाया आपने की महफ़िल में हम रो ना सके,
ना जाने क्या बात है आप में सनम,
माना है जबसे तुम्हें अपना किसी के हम हो ना सके।







दुनिया है पत्थर की जज़्बात नहीं समझती,
दिल में जो छुपी है वो बात नहीं समझती,
चाँद तन्हा है तारों की बारात में,
दर्द मगर चाँद के ज़ालिम रात नहीं समझती।






मर कर तमन्ना जीने की जिसे नहीं होती,
रो के खुश होने की तमन्ना किसे नहीं होती,
कह तो दिया की जी लेगें अपनों के बगैर,
पर अपनों की तमन्ना किसे नहीं होती।







सब फूलों की जुदा कहानी है,
ख़ामोशी भी तो प्यार की निशानी है,
न कोई जख्म है, फिर भी ऐसा एहसास है,
यूँ महसूस होता है कोई, आज भी दिल के पास है।








Patthar ki duniya jazbaat nahi samjhati,
dil mein kya hai wo baat nahi samajhati,
tanha to chaand bhi sitaaron ke bhich mein hai,
par chaand ka dard wo raat nahi samjhati…






नहीं था जोर उसकी सितम नवारियों का,
मगर मुझे भी होसले मेरे खुदा से मिले,
मेरी अम्मा क्यों कहती है बार बार मुझसे,
वो मोहबात ही क्या हो इल्तिजा से मिले।






मैंने उस=नसे प्यार किया,
यह मेरे प्यार की हद थी,
मैंने उनपे इतबार किया,
यह मेरे इतबार की हद थी,
मरकर भी खुली रही मेरी आखें,
यह मेरे इन्तजार की हद थी।







में साँस रोकना चाहता था,
इस निर्दयी दुनिया से दूर जाना चाहता था,
क्योंकि वो हर साँस में मुझे याद आती थी,
पर में ऐसा कर नहीं पाया,
क्योंकि ये जिन्दगी भी तो उसी की थी,
में उसे ऐसे ही समाप्त कैसे कर सकता था।




यूँ तो सदमो में भी हँस लेता था में,
आज क्यों बेवजह रोने लगे हैं हम,
बरसों से हथेलियाँ खाली रही मेरी,
फिर आज क्यों लगा सब खोने लगा हूँ में।




हम अगर आपसे मिल नहीं पाते,
ऐसा नहीं है की आप हमें याद नहीं आते,
माना जहाँ के सब रिश्ते निभाए नहीं जाते,
लेकिन जो दिल में बस जाते हैं उन्हें भुलाया नहीं जाता।


दिल के दर्द को दिल तोड़ने वाले क्या जाने,
प्यार की रस्मों के यह ज़माने बाले क्या जाने,
होती है कितनी तकलीफ कब्र के निचे,
यह ऊपर से फूल चढाने बाले क्या जाने।





सजा हमें ये कैसी मिली दिल लगाने की,
रो रहे मगर तमन्ना थी मुस्कुराने की,
अपना दर्द किसे दिखाऊ ये दोस्त,
दर्द भी उसीने दिया जो वजह थी मुस्कुराने की।





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3 comments:

  1. सुनो ऐ जिहाद के गुलामों।। ये जिहाद की आग सब कुछ जला देगी आज पाक रोया कल हम भी रोये थे हमारे अपने भी मोंत का कफन ओड के सोये थे ।आतंक का कोई धर्म कोई मजहब नही होता ।मोत का तांडव ही इस का खुदा होता।।।by mukesh

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  2. रोती हुई आँखो मे इंतेज़ार होता है,
    ना चाहते हुए भी प्यार होता है,
    क्यू देखते है हम वो सपने,
    जिनके टूटने पर भी उनके सच होने
    का इंतेज़ार होता है?….. By vishu

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